राजस्थान - नदियाँ
राजस्थान की नदियां
राजस्थान का अधिकांश भाग रेगिस्तानी है अतः वहां नदीयों का विशेष महत्व है। पश्चिम भाग में सिचाई के साधनों का अभाव है परिणाम स्वरूप यहां नदीयों का महत्व ओर भी बढ़ जाता है। प्राचीन समय से ही नदियों का विशेष महत्व रहा |राजस्थान में महान जलविभाजक रेखा का कार्य अरावली पर्वत माला द्वारा किया जाता है। अरावली पर्वत के पूर्व न पश्चिम में नदियों का प्रवाह है और उनका उद्गम "अरावली" पर्वत माला है।
1.चम्बल नदी(चर्मण्वती,नित्यवाही,सदानिरा,कामधेनू)
राजस्थान की सबसे अधिक लम्बी नदी चम्बल नदी का उद्गम मध्य-प्रदेश में महु जिले में स्थित जानापाव की पहाडि़यों से होता है। यह नदी दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हुई राजस्थान के चितौड़गढ़ जिले मे चैरासीगढ़ नामक स्थान पर प्रवेश करती है और कोटा व बंूदी जिलों में होकर बहती हुई सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर, जिलों में राजस्थान व मध्य-प्रदेश के मध्य सीमा बनाती है। यह नदी मध्यप्रदेश के 4 जिलों महु, मंन्दसौर, उज्जैन और रतलाम से होकर बहती है।
राजस्थान की एकमात्र नदी जो अ्रन्तर्राज्यीय सीमा का निर्माण करती है- चम्बल नदी है। अन्त में उत्तर-प्रदेश के इटावा जिले में मुरादगंज नामक स्थान पर यमुना नदी में विलीन हो जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई - 966 कि.मी. है जबकि राजस्थान में यह 135 कि.मी बहती है।यह 250 कि.मी. लम्बी राजस्थान की मध्यप्रदेश के साथ अन्र्तराज्जीय सीमा बनाती है। यह भारत की एकमात्र नदी है जो दक्षिण दिशा से उत्तर की ओर बहती है। राजस्थान और मध्य-प्रदेश के मध्य चम्बल नदी पर चम्बल घाटी परियोजना बनाई गयी है और इस परियोजना में चार बांध भी बनाए गये है।
गांधी सागर बांध (म.प्र.)राणा प्रताप सागर बांध (चितौड़,राज.)जवाहर सागर बांध (कोटा,राज.)कोटा सिचाई बांध (कोटा, राज.)
सहायक नदियां : पार्वती, कालीसिंध, बनास, बामनी, पुराई
चम्बल नदी में जब बामनी नदी (भैसरोड़गढ़ में) आकर मिलती है तो चितौड़गढ़ में यह चूलिया जल प्रपात बनाती है, जो कि राजस्थान का सबसे ऊंचा जल प्रपात (18 मीटर ऊंचा) बनाती है। चितौड़गढ़ में भैसरोडगढ़ के पास चम्बल नदी में बामनी नदी आकर मिलती है। समीप ही रावतभाटा परमाणु बिजली घर है कनाडा के सहयोग से स्थापित 1965 में इसका निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ।
रामेश्वरम:- राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले में चम्बल नदी में बनास व सीप नदियां आकर मिलती है और त्रिवेणी संगम बनाती है।
डांग क्षेत्र
चम्बल नदी के बहाव क्षेत्र में गहरी गढ़े युक्त भूमि जहां वन क्षेत्रों /वृक्षों की अधिकता है। 30-35 वर्ष पूर्व ये बिहार डाकूओं की शरणस्थली थे इन क्षेत्रों को डांग क्षेत्र कहा जाता है इन्हे 'दस्यू' प्रभावित क्षेत्र भी कहा जाता है।
सर्वाधिक अवनालिक अपवरदन इसी नदी का होता है। चम्बल नदी में स्तनपायी जीव 'गांगेय' सूस पाया जाता है।
काली सिंध
यह नदी मध्यप्रदेश के बांगली गांव(देवास) से निकलती है।देवास, शाजापुर, राजगढ़ मे होती हुई झालावाड के रायपुर में राजस्थान में प्रवेश करती है। झालावाड कोटा में बहती हुई कोटा के नानेरा में यह चम्बल में मिल जाती है। आहु, परवन, निवाज, उजाड सहायक नदियां है।इस नदी पर कोटा में हरिशचन्द्र बांध बना है।
आहु
यह मध्यप्रदेश मेंहदी गांव से निकलती है। झालावाड के नन्दपूूर में राजस्थान में प्रवेश करती है। झालावाड़ कोटा की सीमा पर बहती हुई झालावाड़ के गागरोन में काली सिंध में मिल जाती है।
तथ्य
झालावाड़ के गागरोन में कालीसिंध आहु नदियांे का संगम होता है। इस संगम पर गागरोन का प्रसिद्ध जल दुर्ग स्थित है।
पार्वती
यह मध्यप्रदेश के सिहोर से निकलती है बांरा के करियाहट में राजस्थान में प्रवेश करती है।बांरा, कोटा में बहती हुई कोटा के पालीया गांव में चम्बल में मिल जाती है।
तथ्य
पार्वती परियोजना धौलपुर जिले में है।
परवन
यह अजनार/घोड़ा पछाड की संयुक्त धारा है।यह मध्यप्रदेश के विध्याचल से निकलती है। झालावाड में मनोहर थाना में राजस्थान में प्रवेश करती है।झालावाड़ व बांरा में बहती हुई बांरा में पलायता (नक्से के अनुसार अटा गांव) गांव में काली सिंध में मिल जाती है।
बनास नदी
उपनाम: वन की आशा, वर्णानाशा, वशिष्ठि कुल लम्बाई: 480 कि.मी.
बहाव: राजसमंद, चितौडगढ़,़ भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक, सं. माधोपुर बेड़च व मेनाल नदीयां बनास में दायीं तरफ से मिलती है।
राजस्थान में पूर्णतः प्रवाह की दृष्टि से सर्वाधिक लम्बी नदी बनास नदी का उद्गम राजसमंद से चितौड़गढ, भीलवाडा, अजमेर, टोंक जिलों से होकर बहती हुई अन्त में सवाई माधोपुर जिले में रामेश्वरम् नामक स्थान पर चम्बल नदी में विलीन हो जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 480 कि.मी. है जो की पूर्णतः राजस्थान में है। पूर्णतया राजस्थान- राजस्थान में बहने वाली सबसे लंम्बी नदी है।

इस नदी पर दो बांध बनाए गए हैः-
(अ) बीसलपुर बांध (टोडारायसिंह कस्बा टोंक)(ब) ईसरदा बांध (सवाई माधोपुर)
इससे जयपुर जिले को पेयजल की आपूर्ति की जाती है।
बीगोंद (भीलवाडा) - भीलवाड़ा जिले में बीगौंद नामक स्थान पर बनास नदी में बेडच व मेनाल प्रमुख है। बनास का आकार सर्पिलाकार है।
सहायक नदियां: बेड़च, मेनाल, खारी, कोठारी, मोरेल
बेड़च नदी (आयड़)
उद्गम:- गोगुन्दा की पहाडियां (उदयपुर)
कुल लम्बाई:- 190 कि.मी.
आयड सभ्यता का विकास/बनास संस्कृति
समापन:- बीगोद (भीलवाड़ा)
राजस्थान में उदयपुर जिलें में गोगुंदा की पहाडियां से इस नदी का उद्गम होता है। आरम्भ में इस नदी को आयड़ नदी कहा जाता है। किन्तु उदयसागर झील के पश्चात् यह नदी बेड़च नदी कहलाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 190 कि.मी. है। यह नदी उदयपुर चितौड़ जिलों में होकर बहती हुई अन्त में भीलवाड़ा जिले के बिगोंद नामक स्थान पर बनास नदी में मिल जाती है। चितौड़गढ़ जिले में गम्भीरी नदी इसमें मिलती है।
लगभग 4000 वर्ष पूर्व उदयपुर जिले में इस नदी के तट पर आहड़ सभ्यता का विकास हुआ। बेड़च नदी बनास की सहायक नदी है।
कोठारी
यह राजसमंद में दिवेर से निकलती है। राजसमंद भिलवाड़ा में बहती हुई भिलवाड़ा के नन्दराय में बनास में मिल जाती है। भिलवाड़ा के मांडलगढ़ कस्बे में इस पर मेजा बांध बना है।
गंभीरी
मध्यप्रदेश के जावरा की पहाडीयों(रतलाम) से निकलती है।चित्तौड़गढ़ में निम्बाहेडा में राजस्थान में प्रवेश करती है। चित्तौडगढ़ दुर्ग के पास यह बेडच में मिल जाती है।
खारी
यह राजसमंद के बिजराल गांव से निकलती है।राजसमंद, अजमेर , भिलवाड़ा, टोंक में बहती हुई टोंक के देवली में बनास में मिल जाती है। भिलवाडा के शाहपुरा में मानसी नदी आकर मिलती है।भिलवाडा का आसिंद कस्बा इसे के किनारे है।
मोरेल
यह जयपुर के चैनपुरा(बस्सी) गांव से निकलती है।जयपुर, दौसा, सवाईमाधोपुर में बहती हुई करौली के हडोती गांव में बनास में मिल जाती है। सवाईमाधोपुर के पिलुखेडा गांव में इस पर मोरेल बांध बना है।
ढुंण्ढ/डुंण्ड
यह जयपुर के अजरोल/अचरोल से निकलती है।जयपुर,दौसा में बहती हुई दौसा लालसोट में यह मोरेल में मिल जाती है। इस नदी के कारण जयपुर के आस-पास का क्षेत्र ढुंढाड कहलाता है।
बाणगंगा नदी
उपनाम:- अर्जुन की गंगा, तालानदी, खण्डित, रूडित नदी
कुल लम्बाई:- 380 कि.मी.
बहाव:- जयपुर, दौसा, भरतपुर
समापन:- यू.पी. मे फतेहबाद के पास यमुना
एक मान्यता के अनुसार अर्जुन ने एक बाण से इसकी धारा निकाली थी अतः इसे अर्जुन की गंगा भी कहते है। लगभग 380 कि.मी. लम्बी इस नदी का उद्गम जयपुर जिले में बैराठ की पहाडियों से होता है। यह जयपुर, दौसा, भरतपुर में बहने के पश्चात् उतरप्रदेश मे आगरा के समीप फतेहबाद नामक स्थान पर यमुना नदी में विलीन हो जाती है। उपनाम: इसे खण्डित रूण्डित व तालानदी भी कहते है। इस नदी के तट पर बैराठ सभ्यता विकसित हुई।
राजस्थान में बैराठ नामक स्थान पर ही मौर्य युग के अवशेष प्राप्त हुए है।
राजस्थान की नदियां(अरब सागर तंत्र की नदियां)
लूनी नदी
उपनाम:- लवणवती, सागरमती/मरूआशा/साक्री
कुल लम्बाई:- 495 कि.मी.
राजस्थान में लम्बाई:- 330 कि.मी.
पश्चिम राजस्थान की गंगा, रेगिस्तान की गंगा, आधी मीठी आधी खारी
बहाव:- अजमेर, नागौर, जोधपुर, पाली, बाड़मेर, जालौर
पश्चिम राजस्थान की सबसे लम्बी नदी है।
पश्चिम राजस्थान की एकमात्र नदी लूनी नदी का उद्गम अजमेर जिले के नाग की पहाडियों से होता है। आरम्भ में इस नदी को सागरमति या सरस्वती कहते है। यह नदी अजमेर से नागौर, जोधपुर, पाली, बाडमेर, जालौर जिलों से होकर बहती हुई गुजरात के कच्छ जिले में प्रवेश करती है और कच्छ के रण में विलुप्त हो जाती है।

इस नदी की कुल लम्बाई 495 कि.मी. है। राजस्थान में इसकी कुल लम्बाई 330 कि.मी. है। राजस्थान में लूनी का प्रवाह गौड़वाड़ क्षेत्र को गौड़वाड प्रदेश कहा जाता है। लूनी की सहायक नदियों में बंकडा, सूकली, मीठडी, जवाई, सागी, लीलडी पूर्व की ओर से ओर एकमात्र नदी जोजड़ी पश्चिम से जोधपुर से आकर मिलती है।
यह नदी बालोतरा (बाड़मेर) के पश्चात् खारी हो जाती है क्योंकि रेगिस्तान क्षेत्र से गुजरने पर रेत में सम्मिलित नमक के कण पानी में विलीन हो जाती है। इससे इसका पानी खारा हो जाता है।
तथ्य
लुनी नदी पर जोधपुर में जसवन्त सागर बांध बना है।
जवाई
यह लुनी की मुख्य सहायक नदी है।यह नदी पाली जिले के बाली तहसील के गोरीया गांव से निकलती है।पाली व जालौर में बहती हुई बाडमेर के गुढा में लुनी में मिल जाती है।
तथ्य
पाली के सुमेरपुर कस्बे में जवाई बांध बना है।जो मारवाड का अमृत सरोवर कहलाता है।
जोजडी
यह नागौर के पंडलु या पौडलु गांव से निकलती है। जोधपुर में बहती हुई जोधपुर के ददिया गांव में लूनी में मिल जाती है।
यह लुनी की एकमात्र ऐसी नदी है। जो अरावली से नहीं निकलती और लुनी में दांयी दिशा से आकर मिलती है।
सुकडी-1
यह पाली के देसुरी से निकलती है।पाली व जालौर में बहती हुई बाडमेर के समदडी गांव में लुनी में मिल जाती है।
तथ्य
जालौर के बांकली गांव में बांकली बांध बना है।
खारी
यह सिरोही के सेर गांव से निकलती है।सिरोही व जालौर में बहती हुई जालौर के शाहीला में जवाई में मिल जाता है।यहीं से इसका नाम सुकडी-2 हो जाता है।
मिठडी
यह पाली से निकलती है।यह पाली और बाडमेर में बहती है।बाडमेर के मंगला में लुनी में मिल जाती है।
बांडी
यह पाली से निकलती है।पाली व जोधपुर में बहती हुई पाली के लाखर गांव में लुनी में मिल जाती है। पाली शहर इसी नदी के किनारे है।
पाली में इस पर हेमावास बांध बना है।यह सबसे प्रदुषित नदी है। इसे कैमिकल रिवर भी कहते है।
माही नदी
बागड.- डूगरपुर - बांसवाडा
कांठल- प्रतापगढ़ मे माही का तटीय भाग
उल्टे '^' की आकृति
कुल लम्बाई - 576 कि.मी.
राजस्थान में लम्बाई - 171 कि.मी.
उपनाम:- (बागड की गंगा, कांठल की गंगा, आदिवासियों की गंगा, दक्षिण राजस्थान की स्र्वण रेखा)
आदिवासियों की जीवन रेखा, दक्षिणी राजस्थान की स्वर्ण रेखा कहे जाने वाली माही नदी दूसरी नित्यवाही नदी है। माही नदी का उद्गम मध्य प्रदेश में अमरोरू जिले में मेहद झील से होता है। अंग्रेजी के उल्टे " यू(U) " के आकार की इस नदी का राजस्थान में प्रवेश स्थान बांसवाडा जिले का खादू है।
यह नदी प्रतापगढ़ जिले के सीमावर्ती भाग में बहती है और तत् पश्चात् र्दिक्षण की ओर मुड़ जाती है और गुजरात के पंचमहल जिले से होती हुई अन्त में खम्भात की खाड़ी में जाकर समाप्त हो जाती है।

माही नदी की कुल लम्बई 576 कि.मी. है जबकि राजस्थान में यह नदी 171 कि.मी बहती है। यह नदी कर्क रेखा को दो बार काटती है।
(अ)गलियाकोट उर्स:- राजस्थान में डूंगरपुर जिले मे माही नदी के तट पर गलियाकोट का उर्स लगता है।
(ब) बेणेश्वर मेला:- राजस्थान के डंूगरपुर जिले की आसपुर तहसील के नवाटपुरा गांव में जहां तीनो नदियों माही --सोम -जाखम का त्रिवेणी संगम होता है बेणेश्वर मेला भरता है। माघ माह की पूर्णिमा के दिन भरने वाला यह मेला आदिवासियों का कुम्भ व आदिवासियों का सबसे बड़ा मेला भी है।
माही नदी पर राजस्थान व गुजरात के मध्य माही नदी घाटी परियोजना बनाई गयी है। इस परियोजना में माही नदी पर दो बांध बनाए गए हैः-
(अ) माही बजाजसागर बांध (बोरवास गांव, बांसवाडा)(ब) कडाना बांध (पंचमहल,गुजरात)
सहायक नदियां : (सोम, जाखम, चाप, अजास, अराव, ऐरन)
सोम
यह नदी उदयपुर में ऋषभदेव के पास बिछामेडा पहाडीयों से निकलती है।उदयपुर व डुंगरपुर में बहती हुई डुंगरपुर के बेणेश्वर में माही में मिलती है।जाखम, गोमती, सारनी, टिंण्डी सहायक नदियां है।
उदयपुर में इस पर सोम-कागदर और डुंगरपुर में इस पर सोम-कमला- अम्बा परियोजना बनी है।
जाखम
यह प्रतापगढ़ जिले के छोटी सादडी तहसिल में स्थित भंवरमाता की पहाडीयों से निकलती है।प्रतापगढ, उदयपुर, डुगरपुर में बहती हुई डुंगरपुर के नौरावल भीलुरा गांव में यह सोम मे मिल जाती है।करमाइ, सुकली सहायक नदियां है।
तथ्य
बेणेश्वर धाम-डुंगरपुर नवाटापरा गांव में स्थित है।यहां सोम , माही , जाखम का त्रिवेणी संगम है।इस संगम पर माघ पुर्णिमा को आदिवासीयों का मेला लगता है। इसे आदिवासीयों/भीलों का कुंभ कहते है। बेणेश्वर धाम की स्थापन संत मावजी ने की थी। पूरे भारत में यही एक मात्र ऐसी जगह है जहां खंण्डित शिवलिंग की पूजा की जाती है।
साबरमती नदी
साबरमती नदी का उद्गम उदयपुर जिलें के कोटडा तहसील में स्थित अरावली की पहाडीयों से होता है। 45 कि.मी. राजस्थान में बहने के पश्चात् संभात की खाडी में जाकर समाप्त हो जाती है।, इस नदी की कुल लम्बााई 416 कि.मी है। गुजरात में इसकी लम्बाई 371 कि.मी. है। बाकल, हथमती, बेतरक, माजम, सेई इसकी सहायक नदीयां है।
उदयपुर जिले में झीलों को जलापूर्ति के लिए साबरमती नदी में उदयपुर के देवास नामक स्थान पर 11.5 किमी. लम्बी सुरंग निकाली गई है जो राज्य की सबसे लम्बी सुरंग है।
गुजरात की राजधानी गांधीनगर साबरमती के तट पर स्थित है। 1915 में गांधाी जी ने अहम्दाबाद में साबरमती के तट पर साबरमती आश्रम की स्थापना की।
पश्चिमी बनास
अरावली के पश्चिमी ढाल सिरोही के नया सानवारा गांव से निकलती है। और गुजरात के बनास कांठा जिले में प्रवेश करती है। गुजरात मेे बहती हुई अन्त में कच्छ की खाड़ी में विलीन हो जाती है। सुकडी, गोहलन, धारवेल इसकी सहायक नदियां है। गुजरात का प्रसिद्ध शहर दीसा या डीसा नदी के किनारे स्थित है।
राजस्थान की नदियां(आंतरिक प्रवाह तंत्र की नदियां)
घग्घर नदी
उपनाम: सरस्वती, दृषद्धती, मृतनदी, नट नदी
उद्गम: शिवालिका श्रेणी कालका (हिमांचल-प्रदेश)
कुल ल. : 465 कि.मी.
कालीबंगा सभ्यता का विकास
राजस्थान की आन्तरिक प्रवाह की सर्वाधिक लम्बी नदी घग्घर नदी उद्गम हिमांचल प्रदेश में कालका के निकट शिवालिका की पहाडि़यों से होता है। यह नदी पंजाब व हरियाणा में बहकर हनुमानगढ़ जिले के टिब्बी नामक स्थान पर प्रवेश करती है और भटनेर दुर्ग के पास जाकर समाप्त हो जाती है।
किन्तु कभी-2 अत्यधिक वर्षा होने की स्थिति में यह नदी गंगानगर जिले में प्रवेश करती है और सुरतगढ़ अनुपगढ़ में बहती हुई पाकिस्तान के बहावलपुर जिले में प्रवेश करती है। और अन्त में फोर्ट अब्बास नामक स्थान पर समाप्त हो जाती है।
पाकिस्तान में इस नदी को "हकरा" (फारसी भाषा का शब्द) के नाम से जानी जाती है।
थार के रेगिस्तान को पाकिस्तान में बोलिस्तान कहते है। इस नदी की कुल लम्बाई 465 कि.मी. है। यह नदी प्राचीन सरस्वती नदी की धारा है। वैदीक काल में इसे द्वषवती नदी कहते है।5000 वर्ष पूर्व इस नदी के तट पर कालिबंगा सभ्यता विकसित हुई। इस नदी के कारण हनुमानगढ़ राजस्थान का धान का कटोरा कहा जाता है। स्थानिय भाषा में इसे नाली कहते है। यह राजस्थान की एकमात्र अन्तर्राष्टीय नदी है।
कांतली नदी
उपनाम: कांटली
लम्बाई: 100 कि.मी
बहाव क्षेत्र: सीकर झुनझुनू
गणेश्वर सभ्यता का विकास
शेखावाटी क्षेत्र की एकमात्र नदी कांतली नदी का उद्गम सीकर जिले में खण्डेला की पहाडि़यों से होता है। यह नदी झुनझुनू जिले को दो भागों में बांटती है। सीकर जिले को इस नदी का बहाव क्षेत्र तोरावाटी कहलाता है। यह नदी 100 कि.मी. लम्बी है और झुनझुनू व चुरू जिले की सीमा पर समाप्त हो जाती है।
लगभग 5000 वर्ष पूर्व सीकर जिले मे इस नदी के तट पर गणेश्वर सभ्यता का विकास हुआ। जहां से मछ़ली पकडने के 400 कांटे प्राप्त हुए है। इससे ज्ञात होता है कि लगभग 5000 वर्ष पूर्व कांतली नदी में पर्याप्त मात्रा में पानी रहा होगा।
काकनेय नदी
बहाव क्षेत्र - जैसलमेर
कुल लम्बाई - 17 कि.मी.
आन्तरिक प्रवाह की सबसे छोटी नदी काकनेय नदी का उद्गम जैसलमेर जिले में कोटारी गांव में होता है। यह नदी उत्तर-पश्चिम में बुझ झील में जाकर समापत हो जाती है। किनतु यह मौसमी नदी अत्यधिक वर्षा मे मीडा खाड़ी में अपना जल गिराती है। स्थानीय लोग इसे मसूरदी कहते है।
साबी नदी
राजस्थान में आन्तरिक प्रवाह नदी साबी का उद्गम जयपुर जिले में सेवर की पहाडि़यों से होता है। यह नदी उतर-पूर्व की ओर बहकर अलवर जिले में बहती है और हरियाणा के गुड़गांव जिले नजफरगढ़ के समीप पटौती में जाकर समाप्त होती है। यह नदी अलवर जिले की सबसे लम्बी नदी है। मानसुन काल में इस नदी का पाट अत्यधिक चैड़ा हो जाता है।यह अपनी विनाश लीला के लिए प्रसिद्ध थी। अकबर ने इस पर कई बार पुल बनाने का प्रयास किया लेकिन असफल रहा।
रूपारेल नदी (वाराह/लसवारी)
यह नदी अलवर जिले के थानागाजी से निकलती, भरतपुर में समाप्त हो जाती है।रूपारेला नदी भरतपुर की जीवन रेखा है।
मैन्था नदी (मेंढा)
यह नदी जयपुर के मनोहरथाना से निकलती है सांभर के उत्तर में विलन हो जाती है।

रूपनगढ़ नदी
यह सलेमाबाद(अजमेर) से निकलती है और सांभर के दक्षिण में विलन हो जाती है। इस नदी के किनारे निम्बार्क सम्प्रदाय की पीठ है।
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Notes-
राजस्थान सामान्य ज्ञान (Rajasthan gk)
भारत सामान्य ज्ञान (India gk)
विश्व सामान्य ज्ञान (World gk)
भूगोल (Geography gk)
इतिहास (History gk)
सामान्य विज्ञान (General science gk)
Computer gk
By- Hindigkpoint
very important information
ReplyDeleteNice blog!
ReplyDeleteThanks for this helpful information. You can get more such GK Question Answers in Hindi on GK Exams.